Smart Contracts कैसे काम करते है (How Smart Contracts Work In Hindi)
स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट के बारें में पहली बार 1996 में Nick Szabo ने जिक्र किया था जो Computer Scientist और Cryptographer थे इसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी खुद की बनाई डिजिटल करेंसी पर किया जिसका नाम “Bit Gold” था परन्तु उस वक़्त यह इतनी प्रचलित नहीं हो सकी क्योंकी यह टेक्नोलॉजी अपने समय से काफ़ी आगे थी.
स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का फिर से इस्तेमाल 2013 में Ethereum क्रिप्टोकरेंसी के खोजकर्ता Vitalik Buterin ने किया जो की आज क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में काफ़ी बड़ा नाम है जब से स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट और ज्यादा प्रचलित हो गया. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को बनाने के लिए अलग तरह की प्रोग्रामिंग भाषा की जरुरत होती है जिसका नाम Solidity है.
Solidity भाषा लगभग Java Script से मिलती जुलती है अगर आपको Java Script भाषा आती है तो आप बड़े ही आसानी से Solidity भाषा को समझ सकते है और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को भी बना सकते है.
जिस प्रकार से साधारण कॉन्ट्रैक्ट और एग्रीमेंट होते है उसी प्रकार से यह स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट भी होते है पर जो साधारण कॉन्ट्रैक्ट होते है उनमे हमे थर्ड पार्टी की मदद चाहिए होती है जैसे आपको अपना घर किसी को बेचना है तो आपको उसके लिए प्रॉपर्टी डीलर की जरुरत पड़ेगी डॉक्यूमेंट तैयार करने के लिए वकील की जरुरत पड़ेगी जिसमे आपका काफ़ी समय और पैसा बर्बाद होता है.
साधारण कॉन्ट्रैक्ट में हम थर्ड पार्टी के भरोसे होते है, हो सकता है वो थर्ड पार्टी आपके साथ कोई धोखा करदे या वो कॉन्ट्रैक्ट में कुछ हेर फेर करदे जो की काफ़ी बार होता भी है. परन्तु वही स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट में किसी थर्ड पार्टी की जरुरत नहीं होती और इसमें जो भी लेन देन की प्रक्रिया होती है वो काफ़ी तेजी से होती है. एक बार जो स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट बन गया उसको बदला नहीं जा सकता है.
जिसके कारण इसमें फ्रॉड होना नामुमकिन है और ब्लॉकचैन में होने के कारण स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को हैक करना भी बहुत ज्यादा मुश्किल है इसलिए यह काफ़ी सुरक्षित माने जाते है. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट के जरिए जो भी दो पार्टी के बीच में लेन देन होगी उसकी जानकारी ब्लॉकचैन में रहती है जिसको कोई भी देख सकता है और उससे पता लगा सकता है की जिस भी संपत्ति को लेकर यह लेन देन हुई है उसका मालिक कौन है.
मान लेते है दो व्यक्ति बिटकॉइन की लेन देन के लिए स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल करते है तो सबसे पहले लेन देन के लिए दोनों व्यक्तियों के डिजिटल दस्तख़त की जरुरत होती है, जब एक व्यक्ति पैसे भेजता है तो वो स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट के अंदर सुरक्षित जगह पर स्टोर हो जाते है और वो पैसे दुसरे व्यक्ति को तब तक नहीं मिलते जब तक वो बिटकॉइन को भेज नहीं देता अगर वो बिटकॉइन नहीं भेजता तो पैसे पहले व्यक्ति को वापस हो जायेंगे.
जब तक स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट के अंदर लिखी गई शर्तो को पूरा नहीं किया जाता तब तक लेन देन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती परन्तु जैसे ही दोनों पार्टी अपनी अपनी शर्तें पूरी कर देती है उसी वक़्त लेन देन पूरा हो जाता है. इसी तरह से स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट काम करतें है.
Smart Contract कैसे बनाये?
स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को बनाने का सबसे प्रसिद्ध प्लेटफार्म है Ethereum जिसने स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट बनाने के लिए खुद की प्रोग्रामिंग भाषा Solidity को बनाया है, एथेरियम पर अभी तक काफ़ी सारे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट बनाये जा चुके है. इसने स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को बनाना आसान कर दिया है जिसके कारण ज्यादातर लोग स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को बनाने के लिए एथेरियम का इस्तेमाल करते है.
हालाँकि इसकी काफ़ी खामियां भी है हाल ही में एक रिसर्च के दौरान पता चला की Ethreum पर बनने वाले स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट में काफ़ी खामियां (Bug) नजर आई जिसके कारण इनकी सुरक्षा को खतरा हो सकता है. वही एथेरियम पर जो लेन देन की फीस होती है वो बाकी क्रिप्टोकरेंसी प्लेटफार्म से ज्यादा है, एथेरियम का नेटवर्क इस ख़ामी को सुधारने में काम कर रहा है
एथेरियम के अलावा ऐसे बहुत सारे नेटवर्क है जहा पर आप स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को बना सकते है जैसे Hyperledger Fabric, Nem, Stellar और Cardano इत्यादि.
Smart Contract के फायदे और नुकसान
Smart Contract के फायदे
1. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का पहला फायदा ये है की इसने बीच में से थर्ड पार्टी को हटा दिया है जिससे आपका काफी समय और पैसा बचता है.
2. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट पर एक बार कोडिंग से नियम और शर्तो (Term & Condition), समझौतो (Agreement) को बनाना पड़ता है उसके बाद यह सारा काम खुद ही करता है इसको चलाने के लिए किसी की जरुरत नहीं होती.
3. साधारण कॉन्ट्रैक्ट बनांते वक़्त काफ़ी ज्यादा समय लगता है, वही स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की मदद से सब कुछ तेजी से होता है.
4. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को ब्लॉकचैन टेक्नोलॉजी में स्टोर करके रखा जाता है जिसके कारण इसे हैक करना या बदलना नामुमकिन है. वही जो आम कॉन्ट्रैक्ट है वो चोरी भी हो सकते है या कही खो सकते है या फट सकते है और सबसे बड़ी बात तो यह की उन्हें बड़े ही आसानी से बदला जा सकता है.
Smart Contract के नुक्सान
1. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का सबसे बड़ा नुक्सान यह है की अगर कॉन्ट्रैक्ट को ठीक तरीके से नहीं बनाया जाता है और उसमे कोई कमी छोड़ दी जाती तो इससे हैकर आसानी से स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को हैक कर सकता है और सारा डाटा और पैसा चुरा सकता है.
2. अगर कॉन्ट्रैक्ट बनाते वक़्त उसमे कुछ गलती हो जाती है तो फिर उस गलती को वापस से ठीक नहीं किया जा सकता क्योंकी स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को बनाया ही इस तरह से जाता है की एक बार उसको बनाकर वापस से बदला नहीं जा सकता.
3. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट में लेन देन करते वक़्त अगर इसमें कुछ भी गड़बड़ होती है तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर पायेगा क्योंकी यह सरकार या किसी थर्ड पार्टी के कंट्रोल में नहीं है इसलिए सारी जिम्मेदारी आपकी होगी.
4. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को लेकर ठीक तरह से कोई नियम और कानून नहीं है इसलिए काफ़ी लोग इनका इस्तेमाल करने से घबराते है.
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